Saturday, August 29, 2009

रोको मत अपनी कलम अमन के गीत लिखो

समिधा सुलगी, श्रृंगार सुलगने वाला है,
रोको मत अपनी कलम अमन के गीत लिखो।

नभ की गंगा का पानी कुछ गंदला सा है
मौसम पहले से कुछ बदला-बदला सा है
बदरी सी चारों ओर क्षितिज पर छायी है
मानो धरती की आग उभरकर आयी है
लिखते आए सदियों से गीत समर्पण के
इस कोलाहल में नवजीवन के गीत लिखो

समिधा सुलगी, श्रृंगार सुलगने वाला है,
रोको मत अपनी कलम अमन के गीत लिखो।

छिटका दो चिनगारी सागर के पानी पर
झलरा दो मोती किस्मत की पेशानी पर
पेशानी पर लिख दो इतिहास जमाने का
कुछ असर जिंदगी पर हो नए तराने का
दुनियावालों को नए तराने गाने दो
तुम नए छंद में नए सृजन के गीत लिखो

समिधा सुलगी, श्रृंगार सुलगने वाला है,
रोको मत अपनी कलम अमन के गीत लिखो।

अंगड़ाई लेने को दुनिया अकुलाती है
उपर देखो धरती की आह धुंआती है
इसे मजलूमों की आह न समझो, आंधी है
इस आंधी के पीछे लेनिन है, गांधी है
कुछ नए सितारे आसमान पर चमकेंगे
इस उथल-पुथल में परिवर्तन के गीत लिखो

समिधा सुलगी, श्रृंगार सुलगने वाला है,
रोको मत अपनी कलम अमन के गीत लिखो।

4 comments:

  1. उपर देखो धरती की आह धुंआती है
    इसे मजलूमों की आह न समझो, आंधी है
    इस आंधी के पीछे लेनिन है, गांधी है
    कुछ नए सितारे आसमान पर चमकेंगे
    इस उथल-पुथल में परिवर्तन के गीत लिखो
    .............................
    शानदार अभिव्यक्ति

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  2. बहुत बढ़िया सर... ऐसी कविता पढ़कर मरता हुआ जोश दुबारा जिंदा हो जाता है...

    कुन्दन शशिराज

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