Tuesday, September 1, 2009

मतभेद सही मनभेद न हो

कई दिनों से सोच रहा हूं कि कुछ लिखूं, लेकिन लिख नहीं पा रहा हूं क्योंकि काफी समय बाद रोज-रोज के काम से ब्रेक लिया है तो उसका भरपूर आनंद ले रहा हूं...... पर कुछ भाइयों ने आज लिखने पर मजबूर किया... खैर.... आज जिस मुद्दे की बात करना चाहता हूं उस पर सीधे आने की बजाए आप लोगों को एक छोटा सा किस्सा सुनाना चाहता हूं......
एक गांव में एक सज्जन ने कुछ किताबें पढ़ ली, थोड़ी बहुत दूसरी भाषाएं भी सीख ली और रोज गांव वालों को उपदेश देने लगे....और गांव वाले भी बड़े चाव से सुनते क्योंकि गांव वाले कम पढ़े लिखे लोग थे इसलिए उन पढ़े लिखे सज्जन की बात उन्हें अच्छी लगती, उसी गांव में एक चाचा थे उन्हें ये व्यक्ति नागवार गुजरता... उन्हें लगता कि हमारा अनुभव कुछ और कहता है और ये सारी उल्टी बातें करता है। एक दिन तो हद हो गई जब उन सज्जन ने कहा कि ‘ मैं भगवान राम को कभी माफ नहीं कर सकता... भगवान राम ने जो माता सीता के साथ किया, लव-कुश के साथ किया उसके लिये मैं उन्हें कभी माफ नहीं कर सकता’ साथ ही वो मर्यादा पुरुषोत्तम को भला-बुरा कहने लगा. जो उसकी बातें सुन रहे थे अचंभे में पड़ गए कि भाई इस सज्जन ने क्या कह डाला, इसे क्या हो गया ... तभी चाचा बीच में से उठे और बोले – बेटा जब भगवान राम तुमसे माफी मांगने आएं तो उन्हें बिल्कुल माफ मत करना, उन्हें खूब जलील करना और कहना कि हे राम तूने क्या किया..फिलहाल दूसरी बातें कर, फिर चाचा बोले... जब राम तुमसे माफी मांगने आएंगे तब तो तुम उन्हें माफी नहीं देगा न...। वो तो तुमसे माफी मांग ही नहीं रहे और तू है कि इस जिद पर अड़ा है कि तू कभी उन्हें माफ नहीं करेगा। अचानक बैठक का माहौल बदल गया... और सबको पता चल गया कि इस व्यक्ति की कितनी गहरी पैठ है।
मैं ये किस्सा आप लोगों को इसलिये नहीं सुनाना चाह रहा था कि मैं किसी की तुलना भगवान राम से कर रहा हूं या फिर किसी के बचाव की मेरी कोई मंशा है बल्कि मैं सिर्फ ये कहना चाहता हूं कि मित्रों किसी के बारे में भी लिखने से पहले अपने गिरेबान में झांको, उसके किये की तुलना अपने कर्मों से करो औऱ सोचो कि उस शख्स ने जो हासिल किया है क्या वो यूं ही था... तो फिर आपको वो सब क्यों नहीं मिल रहा। जी हां मैं बात आदरणीय प्रभाष जी की ही कर रहा हूं, कुछ ब्लागिए भाई लोग उनके पीछे नहा धोकर पड़ गए हैं। दरअसल सच ये है कि ये लोग उनके जरिए अपनी प्रसिद्धि चाहते हैं, इन भाई लोगों को मीडिया समाज के भी लोग ठीक से नहीं जानते (उनके इतिहास पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता नहीं तो मैं पथ-भ्रमित हो जाउंगा ) लेकिन ये लोग हैं कि किसी बड़े नाम का सहारा लेकर दिन-रात मशहूर होने की जुगत में लगे हैं और जब कोई उनका इष्ट-मित्र उनसे ऐसी हरकतें नहीं करने को कहता है तो उनका जवाब होता है अरे यार आज तो इस खबर पर 2 हज़ार हिट्स मिले हैं इसे कैसे रहने दूं । आखिर फार्मूला जो है --- हिट है तो फिट है.... लेकिन दोस्तों ये हिट-फिट का फार्मूला पत्रकारिता में ज्यादा दिनों तक नहीं चलता। मैं पूछता हूं इन ब्लागियों से कि ईमान से बोलना कि जब पत्रकारिता में आने की सोची और अपने छोटे शहर में कुछ लिखने पढ़ने लगे तो नहीं सोचते थे आखिर ये पत्रकार कैसा जीवट है जिसे प्रधानमंत्रियों का भी डर नहीं रहा, मालिकों की मनमानी नहीं सुनी, मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि जरुर सोचते होगे इस इंसान की जीवटता के बारे में ।
प्रभाष जी ने जो लिखा उसपर मतभेद हो सकता है, आप भी जाहिर कीजिए... हमारे मित्र दिलीप मंडल ने भी जाहिर किया लेकिन बड़ी सधी हुई भाषा में.... मतभेद होना चाहिए लेकिन मनभेद तो मत पालिए, और उपर से आलम ये कि एक एक लेख पर पंद्रह – पंद्रह कमेंट्स और वो भी बेनामी.... ये कैसी पत्रकारिता है यहां आपलोगों की कुंठाएं सामने आती हैं अगर प्रभाष जी का आलोक जी का ये फिर किसी भी जी का विरोध करना है तो अपने नाम के साथ कीजिए... लेकिन आप करेंगे कैसे क्योंकि आप कर ही नहीं सकते लिजलिजे हैं आप। आप को तो सिर्फ विवाद चाहिए क्योंकि उस विवाद से हिट्स मिलते हैं आपको - और फिर आप सभी के लिए एकमात्र लक्ष्य है मीडिया की सबसे बड़ी वेबसाइट भड़ास4मीडिया को मात देना। कम से कम उस रास्ते पर तो चलो जिस रास्ते पर वो चल रहा है। खबर देता है, मुद्दों पर बहस करता है और वहां बहस करने वाला बेनामी नहीं होता क्यों कि जो बेनामी है वहीं बेमानी है। जो लोग इन मुद्दों पर लगातार बहस किये जा रहे हैं वो अपने अतीत को भूल गये हैं। और जो लोग उस पर कमेंट्स कर रहे हैं दरअसल वो किसी दफ्तर में बैठकर आफिस टाइम में ब्लागिंग कर रहे हैं...काम नहीं आने की वजह से या फिर काम नहीं कर पाने की वजह से गालियां सुनने वाले दफ्तर के किसी कोने में बैठकर उस मालिक का पैसे जाया कर रहे हैं जो उन्हें वो काम करने के लिये देता है। कमेंट्स करने के लिये अगर इन्हें साइबर कैफे में पैसे देने पड़े तो ये कमेंट्स भी नहीं लिखे और मैं ये इसलिये दावे के साथ कह सकता हूं क्योंकि अक्सर मेरे पास दूसरे चैनलों से फोन आता था कि – सर आपके दफ्तर से फलां फलां व्यक्ति मेरे साथ पिछले कई घंटों से चैटिंग पर है तो प्लीज कोई जिम्मेदारी का काम इन्हें मत दीजिएगा नहीं तो निराशा होगी। दरअसल यही हकीकत है इनकी। ये नेट का इस्तेमाल तरक्की के लिए नहीं विनाश के लिये कर रहे हैं। और हां अपने सुधी पाठकों को बताता चलूं कि ये जो ब्लॉगिए हैं फिलहाल बेरोजगार हैं...दिल्ली के कई अखबारों में उठापटक चल रही है .. इन्होंने भी अपनी जोर आजमाइश शुरू कर दी है ... जल्द ही नौकरी करने लगेंगे और फिर आपको ये दिलचस्प मगर बेमतलब बहस पढ़ने को नहीं मिलेगी। अगर आपको यकीं नहीं आता तो एक-एक लाख की नौकरी का ऑफर देकर देखिए इन्हें।

3 comments:

  1. बहुत बढ़िया लिखा आपने। हम हिंदी वालों की दिक्कत यही है कि हम नई सकारात्मक रेखा खींचने की जगह दूसरी रेखाओं को मिटाने में जुट जाते हैं। जिस दिन हम यह बात समझ जाएंगे कि पाजिटिव एनर्जी से काम करने में ही सफलता और आनंद है, उस दिन हम हिंदी वालों से बेहतर कोई नहीं होगा। फिलहाल तो आपस में टांग खिचव्वल का दौर है। तेरी शर्ट मेरी शर्ट से सफेद कैसे, के तर्ज पर तू मेरे से महान कैसे या तू मेरे से आगे कैसे जैसे झगड़े हो रहे हैं। ईश्वर इन लोगों को सदबुद्धि जल्द देगा।

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  2. बहुत ही बढ़िया सही है मनभेद नहीं होना चाहिए

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  3. web patrakarita nai hai. gunjais khoob hai par khatre bhi hain. nausikhiye patrakar iska beja istemal apni bharas nikalne mein kar sakte hain aur kar bhi rahey hain. yey bachchon ke haath mein bandook thamane jaisa ho sakta hai.hit ki mahima tv ke trp jaisa hai. iske naam par koi bhi kukarma kar lete hain log. ek baat akharti hai...aapne khas news site ko certificate kaise de diya. web journalism ko sasakta banana hoga iske liye bhadas nikalne ki pravriti par ankoos lagana hoga.
    sanjay mishra

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