मेरे जीवन के साथ बड़ी मजबूरी है,
मैं वीरानों में गीत सुमन के लिखता हूं।
मैं लिखता हूं इसलिए कि मधुबन शरमाए,
मैं लिखता हूं इसलिए कि जीवन दुहराए,
लिखता जाता उत्थान पतन जग-जीवन का
मुझको न तनिक परवाह पपीहा अकुलाए।
धरती के पन्नों पर आंसू की स्याही से-
मैं सुनसानों में गीत नयन के लिखता हूं
मेरे जीवन के साथ बड़ी मजबूरी है,
मैं वीरानों में गीत सुमन के लिखता हूं।
मेरे गीतों का प्राण सुबह का तारा है
गंगा का पानी है झेलम की धारा है
ज्वारों से लिखता गीत समय के धारों पर
गीतों से अम्बर को दिन-रात पुकारा है
गीली मिट्टी से बने दीप की पांती से
मैं बलिदानों में गीत नमन के लिखता हूं
मेरे जीवन के साथ बड़ी मजबूरी है,
मैं वीरानों में गीत सुमन के लिखता हूं।
मेरे गीतों की कड़ी जवानी बन जाए
चिंतन की कोमल घड़ी कहानी बन जाए
हर शब्द-शब्द के साथ कल्पना भी उतरे
हर चरण-चरण जीवन का दानी बन जाए।
चरणों की आकुल-आहट से युग के पथ पर
मैं अभियानों में गीत गमन के लिखता हूं,
मेरे जीवन के साथ बड़ी मजबूरी है,
मैं वीरानों में गीत सुमन के लिखता हूं।
मेरे गीतों की कड़ी जवानी बन जाए
ReplyDeleteचिंतन की कोमल घड़ी कहानी बन जाए
हर शब्द-शब्द के साथ कल्पना भी उतरे
(किसी को भी छू लेने वाली बेहतरीन कविता)
धन्यवाद इन बेहतरीन शब्दों के लिए
गीली मिट्टी से बने दीप की पांती से
ReplyDeleteमैं बलिदानों में गीत नमन के के लिखता हूं
बहुत खूब ...लाजवाब रचना है...
नीरज
आप वीरानों में गीत सुमन के लिखते हैं
ReplyDeleteआप इस मजबूरी कहते हैं
हम आपकी वीरानी में
गभीर अर्थ खोजते हैं
मैं शब्दों को पढ़कर सोचता रहा कि
गीत सुमन से लिखने में
क्या समां वीरानी रह जाएगी
कल रात जब आंखे बंदकर सोना तो
पूछना खुद से कि
गीत सुमन से लिखने में
क्या समां वीरानी रह जाएगी