Tuesday, August 25, 2009

मेरे जीवन के साथ बड़ी मजबूरी है ....

मेरे जीवन के साथ बड़ी मजबूरी है,
मैं वीरानों में गीत सुमन के लिखता हूं।

मैं लिखता हूं इसलिए कि मधुबन शरमाए,
मैं लिखता हूं इसलिए कि जीवन दुहराए,
लिखता जाता उत्थान पतन जग-जीवन का
मुझको न तनिक परवाह पपीहा अकुलाए।
धरती के पन्नों पर आंसू की स्याही से-
मैं सुनसानों में गीत नयन के लिखता हूं

मेरे जीवन के साथ बड़ी मजबूरी है,
मैं वीरानों में गीत सुमन के लिखता हूं।

मेरे गीतों का प्राण सुबह का तारा है
गंगा का पानी है झेलम की धारा है
ज्वारों से लिखता गीत समय के धारों पर
गीतों से अम्बर को दिन-रात पुकारा है
गीली मिट्टी से बने दीप की पांती से
मैं बलिदानों में गीत नमन के लिखता हूं

मेरे जीवन के साथ बड़ी मजबूरी है,
मैं वीरानों में गीत सुमन के लिखता हूं।

मेरे गीतों की कड़ी जवानी बन जाए
चिंतन की कोमल घड़ी कहानी बन जाए
हर शब्द-शब्द के साथ कल्पना भी उतरे
हर चरण-चरण जीवन का दानी बन जाए।
चरणों की आकुल-आहट से युग के पथ पर
मैं अभियानों में गीत गमन के लिखता हूं,

मेरे जीवन के साथ बड़ी मजबूरी है,
मैं वीरानों में गीत सुमन के लिखता हूं।

3 comments:

  1. मेरे गीतों की कड़ी जवानी बन जाए
    चिंतन की कोमल घड़ी कहानी बन जाए
    हर शब्द-शब्द के साथ कल्पना भी उतरे
    (किसी को भी छू लेने वाली बेहतरीन कविता)
    धन्यवाद इन बेहतरीन शब्दों के लिए

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  2. गीली मिट्टी से बने दीप की पांती से
    मैं बलिदानों में गीत नमन के के लिखता हूं

    बहुत खूब ...लाजवाब रचना है...
    नीरज

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  3. आप वीरानों में गीत सुमन के लिखते हैं
    आप इस मजबूरी कहते हैं
    हम आपकी वीरानी में
    गभीर अर्थ खोजते हैं
    मैं शब्दों को पढ़कर सोचता रहा कि
    गीत सुमन से लिखने में
    क्या समां वीरानी रह जाएगी
    कल रात जब आंखे बंदकर सोना तो
    पूछना खुद से कि

    गीत सुमन से लिखने में
    क्या समां वीरानी रह जाएगी

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