बिहार में आज से देशी-विदेशी सभी किस्म के शराब पर पाबंदी लगा दी गई। न तो अब शराब बेची जाएगी और न ही किसी होटल - रेस्तरां को लाइसेंस मिलेगा। कमाल का फैसला है, अगर आप देश के विकास में अपना योगदान देना चाहते हैं तो किसी भी हिस्से में होने वाले अच्छे काम को सराहा जाना चाहिए और किसी भी हिस्से में बुरे काम की निंदा की जानी चाहिए। वैसा बिल्कुल नहीं होना चाहिए जैसा आजकल भारत माता की जय वाले मामले में हो रहा है। बिहार को अगर पिछले पच्चीस सालों में देखें तो अगर कुछ अच्छे काम हुए हैं तो वो नीतीश कुमार के फैसले से ही हुए हैं। हालांकि नीतीश के सुशासन में शिक्षा और स्वास्थ्य अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है और सहयोगी दल के नेता-कार्यकर्ता फिर उसी रास्ते पर लौटते दिख रहे हैं जिनका विरोध कर नीतीश कुमार ने पहली बार सत्ता पाई थी। इन सबके बीच नीतीश कुमार और उनके कैबिनेट के इस फैसले की जितना सराहना की जाए कम है। शराब से होने वाली समस्याएं और बरबादियां को वही समझ सकता है जिसने उसे करीब से देखा हो। इस मामले में मेरे दो किस्म के अनुभव हैं। घर में, परिवार में कोई व्यक्ति इसका सेवक नहीं है लिहाजा व्यक्तिगत समस्याएं कभी नहीं हुईँ। गांव में जब था तब भी और शहर में आया तब भी। जबकि घर में किसी के सेवन नहीं करने के बावजूद शराब का दंश बड़े करीब से देखा। यहां नाम लेना उचित नहीं है लेकिन अपने गांव में और समाज में इसकी चंगुल में बरबाद होते परिवार देखा है। स्वभाव और संस्कार से ठीक ठाक लोगों को शराब के नशे में वो करते देखा है जिसकी कल्पना से सिहरन पैदा हो। मैं अब उन परिवारों के लिए थोड़ा सुखी हो सकता हूं, उनके बच्चों के भविष्य के लिए थोड़ा निश्चिंत भी। क्यूंकि अगर यह शराब नहीं बंद होती तो मैं जानता हूं कि वो अपने जनाजे से पहले अपने बच्चों के भविष्य का जनाजा निकाल चुके होंगे। लिहाजा नीतीश कैबिनेट के इस फैसले ने अगली पीढ़ी के लिए काफी सुकून दिया है।
पिछले विधानसभा चुनाव में अपने दौर के सिलसिले में कई ऐसे गांव और बस्तियों में गया जहां की सबसे बड़ी समस्या ही शराब है। कुछ इलाकों में नई पीढ़ी के कुछ जागरूक किशोरों ने खुलेआम कहा कि "वोट उसी को जो शराब न दे किसी को"। जबकि हम सब जानते हैं कि चुनाव के दौरान मामला ठीक इसके उलट होता है। पैसे के साथ सबसे ज्यादा शराब बांटा जाता है। नीतीश कुमार का यह फैसला और वो भी पंचायत चुनाव के दौरान, बड़ा ही साहसिक फैसला है। हालांकि िबहार में पार्टियां पंचायत के चुनाव नहीं लड़तीं लेकिन फिर भी वोटर और कैंडिडेट्स तो विचारधाराओं के साथ बहते ही हैं।
अभी अगले ही हफ्ते नीतीश कुमार की पार्टी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव हो जाएगा और अनुमानतः नीतीश कुमार के हाथ में ही पार्टी की बागडोर भी आ जाएगी। ऐसे में बिहार में पूर्ण तौर पर शराब बंदी का फैसला निस्संदेह नीतीश कुमार के पक्ष में जाएगा। पिछले लोकसभा चुनाव से पहले जब जनता दल यू एनडीए से अलग हुई तो कई किस्म की चर्चाएं थी। एक मेरे जानकार ने कटाक्ष में कहा था कि नरेंद्र मोदी तो चुनाव प्रचार में बोलते हैं देश को गुजरात बना दूंगा, नीतीश कुमार क्या बोलेंगे .. देश को बिहार बना दूंगा। उनकी बात सोलह आने सच थी, और आज यह भी सच है कि बिहार भी आज ड्राइ स्टेट की कैटेगरी में जा खड़ा हुआ है। देश के चार राज्यों में एक। और देखिए न कितनी दिलचस्प बात है शराब के साथ …. शराब बनाने वाली कंपनी दिवालिया…. उसे कर्ज देने वाला बैंक खस्ताहाल…… पीने वाले लोग कंगाल…. आखिर यह पैसा जाता है कहां । आखिर में आज मदहोश हूं मैं।
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