Tuesday, August 4, 2009

रात को ओढ़ लूँ...
रात में खो चलूँ
रौशनी उतार कर
आज खुद से मिलूँ
प्रज्वलित हो चलूँ
आज खुद ही जलूँ
सूर्य बन कर उगूँ
आभा बन कर जगूँ
भस्म गर हो गई
बीज बन कर जियुँ
अंकुरित हो सकूँ
जिन्दगी बन सकूँ
स्वर के लय पर
शब्द के आशय में...
स्नेह के अहसास में….
सोच के पँख पर….
एक तरंग बन सकूँ
एक सदिश की तरह
चल सकूँ...
छू सकूँ
आज मैं...
काश मैं...
मैं बन सकूँ

No comments:

Post a Comment