Sunday, April 10, 2016

रवीश कुमार को बिल्कुल मत बख्शिए



रवीश कुमार को आजकल सोशल मीडिया पर बहुत गालियां दी जा रही हैं। ये वही सोशल मीडिया है जिसकी वजह से रवीश अपनी एक अलग पहचान बनाने में कामयाब हुए । आज देश के चंद नामी-िगरामी टीवी पत्रकारों में शुमार किए जाने वाले रवीश काफी दुखी भी हैँ। अपने उपर लगातार होने वाले हमले से क्षुब्ध होकर उन्होंने फेसबुक से दूरी बनाई और अब अपने प्राइम टाइम शो में गाली वाले पूरी घटना का जिक्र किया। दुखी नहीं काफी दुखी दिखे। दरअसल इन दिऩों गजब का ट्रेंड चला है जो आपकी पसंद की बात नहीं करे गैंग बनाकर उसके पीछे पड़ जाओ। अब ये बताइए कि यह कैसे संभव है कि कोई सार्वजनिक जीवन का व्यक्ति सबको खुश कर पाए। मैं तो कहता हूं कि आपलोग रवीश कुमार को बिल्कुल मत बख्शिए, खूब भला-बुरा कहिए , मैं गाली का समर्थन नहीं करता लेकिन अगर आपके संस्कार में हैं तो खूब गाली भी दीजिए। लेकिन इससे पहले अपने गिरेबां में एक बार थोड़ी देर के लिए ही सही झांककर देखिए। रवीश के समानांतर जो पत्रकार दिखते हैं उनको भी देखिए उनके काम और उनके कारनामे भी देखिए, देखिए कि उन्होंने या आपने जो अपने जीवन में किया है उससे देश का कितना भला हुआ है या फिर कितना भला होगा? जब रवीश सूट-बूट वाले टीवी पत्रकारों, एंकर्स के बारे में कहते हैं कि जिन-जिन जगहों पर रवीश गए हैं वहां उनको जाने में दशक बीत जाएं तो इसका मतलब यह नहीं कि वो देश-विदेश घूमने की बात करते हैं वो अपने ही देश के उन हिस्सों की बात करते हैं जहां जाना एक पत्रकार का फर्ज होता है लेकिन न तो आज उन खबरों से सरोकार दिखता है और न हीं लोगों की उसमें दिलचस्पी । कम से कम रवीश खुल कर कहते तो हैं कि वो वही करते हैं जो उनका जमीर कहता है लेकिन उनका क्या जिनका जमीर मर चुका है। जानते हैं जब आप अपने तर्कों में कमजोर पड़ जाते हैं , उनसे हार जाते हैं तो आप शार्ट कट तलाशते हैं और गाली-गलौज पर उतर जाते हैं। क्यूंकि उसमें तथ्यों पर कोई बात नहीं करनी होती। इस पूरे मामले को जरा ढंग से समझने की जरुरत है, मर्सिया पढ़ते टीवी न्यूज के दौर में सोशल मीडिया बंदर के हाथ उस्तरा की तरह है। किसी भी व्यक्ति की लानत-मलानत करनी हो तो यहां पर फौज छोड़ दीजिए, ये फौज न आगे देखती है न पीछे, न किसी घटना के तह तक जाती है बस भेड़ों की झुंड की तरह बहने लगती है। और आपको जरुर जानते होंगे कि देश का ज्यादातर हिस्सा न तो इस सोशल मीडिया की जद में आया है और न हीं  वहां की समस्या से उसका सरोकार है। बावजूद इसके आने वाले दिनों में यही भविष्य होने वाला है और अभी यह ऐसे दौर से गुजर रहा है जहां हमें सतर्क रहना है औऱ कई मामलों में बेपरवाह भी। अगर आप कुछ अच्छा करना चाहते हैं तो इसका इस्तेमाल कीजिए , सतर्क रहिए और अगर आपको गालियां पड़ रही हैं तो बेपरवाह हो जाइए… सच मानिए दूसरा कोई रास्ता नहीं। 

हम बात कर रहे थे रवीश कुमार की तो आप ये बताइए कि पिछले दो सालों में ऐसा क्या हो गया िक धीरे धीरे रवीश सोशल मीडिया के Blue eyed Boy से खलनायक में तब्दील हो गए। रवीश को भी जरा उसपर गौर करना चाहिए। बीजेपी की सरकार बनने के बाद मोदी विरोध की तेज चली आंधी में अच्छे कर्म भी धुल गए। जितना विरोध इस मौजूदा सरकार का हर मामले पर हो रहा है उतना आजाद हिंदुस्तान में किसी सरकार का नहीं हुआ , इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी का भी नहीं। तो क्या मोदी गलत हैं.. क्या उनकी सरकार हर फैसले देश की जनता के खिलाफ कर रही है या फिर कुछ और बात है। रवीश कुमार के साथ किया जाने वाला गलत व्यवहार उतना ही गलत है जितना मोदी सरकार की हर नीतियों का विरोध। सरकार अगर गलत करती है तो उसका विरोध कीजिए लेकिन अगर कुछ अच्छा हो रहा है तो उसकी तारीफ भी होनी चाहिए। कन्हैया मामले में पटियाला हाउस की घटना ने एक गैर मौजूं व्यक्ति को खबरों के केंद्र में लाकर खड़ा कर दिया। पत्रकारों के साथ हुई बदसलूकी पर अगर टीवी स्क्रीन ब्लैक किया जा सकता है तो श्रीनगर में तिरंगा फहराने वालों पर लाठीचार्ज के बाद भी टीवी स्क्रीन ब्लैक किया जाना चाहिए। जब आप अपने जमीर की बात करते हैं तो निरपेक्ष नहीं हो सकते फिर आपको यह भी देखना होगा कि जिस व्यक्ति के संस्थान में आप नौकरी कर रहे हैं उसका जमीर क्या कहता है। जब आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दुहाई देते हैं तो आपको एक लकीर खींचनी होगी कि नीरा राडिया के साथ संबंधों के उजागर होने के वक्त बरखा दत्त के साथ आप खड़े हैं या कि नहीं। 


अन्ना के आंदोलन के वक्त सांप-बिच्छू से छुटकारा पाकर टेलीविजन न्यूज ने खबरों का रुख किया और कुछ साख बनाई, लेकिन जिस तरह से अरविंद केजरीवाल और उनके गैंग ने देश की जनता के साथ मजाक किया और टेलीविजन ने उस मजाक में उनका साथ देकर जनता के साथ धोखा किया एक बार मीडिया अपनी साख के लिए जद्दोजहद कर रहा है। हर कोई अपने सेट एजेंडा के साथ चल रहा है। निष्पक्ष का दावा ठोककर पत्रकार आजकल पक्षकार होते जा रहे हैं जबकि जरुरत जनपक्ष की पत्रकारिता की है। जमीर की आवाज सुनिए रवीश बाबू गालियों के मत डरिए। गालियां भी उसी को पड़ती है जिससे गलत लोगों को डर लगता है। तो दर्शक और पाठक लोग आप रवीश कुमार को बिल्कुल मत बख्शिए, रवीश बाबू आप गालियों से बिल्कुल मत डरिए। यह देश जमीर की आवाज सुनता है, आपकी कई खबरों से इत्तेफाक नहीं रखते होते हुए भी हम आपके साथ हैं क्यूंिक इस भेड़ की भीड़ में कम से कम आप नहीं हैं। 

Tuesday, April 5, 2016

आज मदहोश हूं मैं ः िबहार में शराब बंद

बिहार में आज से देशी-विदेशी सभी किस्म के शराब पर पाबंदी लगा दी गई। न तो अब शराब बेची जाएगी और न ही किसी होटल - रेस्तरां को लाइसेंस मिलेगा। कमाल का फैसला है, अगर आप देश के विकास में अपना योगदान देना चाहते हैं तो किसी भी हिस्से में होने वाले अच्छे काम को सराहा जाना चाहिए और किसी भी हिस्से में बुरे काम की निंदा की जानी चाहिए। वैसा बिल्कुल नहीं होना चाहिए जैसा आजकल भारत माता की जय वाले मामले में हो रहा है। बिहार को अगर पिछले पच्चीस सालों में देखें तो अगर कुछ अच्छे काम हुए हैं तो वो नीतीश कुमार के फैसले से ही हुए हैं। हालांकि नीतीश के सुशासन में शिक्षा और स्वास्थ्य अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है और सहयोगी दल के नेता-कार्यकर्ता फिर उसी रास्ते पर लौटते दिख रहे हैं जिनका विरोध कर नीतीश कुमार ने पहली बार सत्ता पाई थी। इन सबके बीच नीतीश कुमार और उनके कैबिनेट के इस फैसले की जितना सराहना की जाए कम है। शराब से होने वाली समस्याएं और बरबादियां को वही समझ सकता है जिसने उसे करीब से देखा हो। इस मामले में मेरे दो किस्म के अनुभव हैं। घर में, परिवार में कोई व्यक्ति इसका सेवक नहीं है लिहाजा व्यक्तिगत समस्याएं कभी नहीं हुईँ। गांव में जब था तब भी और शहर में आया तब भी। जबकि घर में किसी के सेवन नहीं करने के बावजूद शराब का दंश बड़े करीब से देखा। यहां नाम लेना उचित नहीं है लेकिन अपने गांव में और समाज में इसकी चंगुल में बरबाद होते परिवार देखा है। स्वभाव और संस्कार से ठीक ठाक लोगों को शराब के नशे में वो करते देखा है जिसकी कल्पना से सिहरन पैदा हो। मैं अब उन परिवारों के लिए थोड़ा सुखी हो सकता हूं, उनके बच्चों के भविष्य के लिए थोड़ा निश्चिंत भी। क्यूंकि अगर यह शराब नहीं बंद होती तो मैं जानता हूं कि वो अपने जनाजे से पहले अपने बच्चों के भविष्य का जनाजा निकाल चुके होंगे। लिहाजा नीतीश कैबिनेट के इस फैसले ने अगली पीढ़ी के लिए काफी सुकून दिया है। 

पिछले विधानसभा चुनाव में अपने दौर के सिलसिले में कई ऐसे गांव और बस्तियों में गया जहां की सबसे बड़ी समस्या ही शराब है। कुछ इलाकों में नई पीढ़ी के कुछ जागरूक किशोरों ने खुलेआम कहा कि "वोट उसी को जो शराब न दे किसी को"। जबकि हम सब जानते हैं कि चुनाव के दौरान मामला ठीक इसके उलट होता है। पैसे के साथ सबसे ज्यादा शराब बांटा जाता है। नीतीश कुमार का यह फैसला और वो भी पंचायत चुनाव के दौरान, बड़ा ही साहसिक फैसला है। हालांकि िबहार में पार्टियां पंचायत के चुनाव नहीं लड़तीं लेकिन फिर भी वोटर और कैंडिडेट्स तो विचारधाराओं के साथ बहते ही हैं। 


अभी अगले ही हफ्ते नीतीश कुमार की पार्टी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव हो जाएगा और अनुमानतः नीतीश कुमार के हाथ में ही पार्टी की बागडोर भी आ जाएगी।  ऐसे में बिहार में पूर्ण तौर पर शराब बंदी का फैसला निस्संदेह नीतीश कुमार के पक्ष में जाएगा। पिछले लोकसभा चुनाव से पहले जब जनता दल यू एनडीए से अलग हुई तो कई किस्म की चर्चाएं थी। एक मेरे जानकार ने कटाक्ष में कहा था कि नरेंद्र मोदी तो चुनाव प्रचार में बोलते हैं देश को गुजरात बना दूंगा, नीतीश कुमार क्या बोलेंगे .. देश को बिहार बना दूंगा। उनकी बात सोलह आने सच थी, और आज यह भी सच है कि बिहार भी आज ड्राइ स्टेट की कैटेगरी में जा खड़ा हुआ है। देश के चार राज्यों में एक। और देखिए न कितनी दिलचस्प बात है शराब के साथ …. शराब बनाने वाली कंपनी दिवालिया…. उसे कर्ज देने वाला बैंक खस्ताहाल…… पीने वाले लोग कंगाल…. आखिर यह पैसा जाता है कहां । आखिर में आज मदहोश हूं मैं।