बापू की जयंती पर अपने ब्लॉग के पाठकों को एक छोटी सी भेंट... यह विचार मेरे मन में आज से सत्रह साल पहले आये थे जब मैं दिल्ली विश्वविद्यालय का छात्र था।
बापू !
अच्छा हुआ तुम स्वर्गीय हुए,
मरकर स्मरणीय हुए
अगर तुम जिंदा होते
न जाने कितना शर्मिंदा होते
देश की हालत देख रोए होते,
कितना कुछ ढोए होते,
अपनों के विरुद्ध अबतक
अनशन पर प्राण खोए होते
वियावान जंगलों से गुजर रही थी
देश की गाड़ी
उसे तो तुमने बचा लिया
जालिम लुटेरों से
पर--
शहर के बीच आकर
आखिर लूट ही ली गई
अपने ही सवारियों से
आजादी की गाड़ी
आप बताएं क्या देश के हालात पिछले सत्रह सालों में सुधरे हैं.. क्या हम बापू को सच्ची श्रद्धांजलि दे पा रहे हैं।
बहुत सही व खरा लिखा है आपने।
ReplyDeletewonderful !
ReplyDeleteplease see my blog for a poem on bapu
www.bebkoof.blogspot.com
हालत बिल्कुल नहीं बदले सर बल्कि और बदतर हुए हैं...सही मायनों में गांधी को आज तक नहीं समझा गया...मूर्ति लगाकर अपने दायित्वों को खत्म समझ लिया गया...बापू जितने सरल थे..उनके विचारों को अब उतना जटिल बना कर पेश किया जा रहा है...
ReplyDeletegreat sir....
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